(यह मत समझना कि ब्राह्मण होने के कारण मैं आरक्षण प्रणाली का विरोध लिखूंगा, मैं तो इस पोस्ट में केवल विश्लेषण करूँगा|)
इस पोस्ट को देखने से पहले मेरी यह पोस्ट अवश्य देखे: हर भारतीय नागरिक यहाँ का मूल निवासी है..............
आरक्षण या अनामत क्यों दिया गया है?
- जिससे हर जाति का विकास हो और हमारे समाज में जो अस्पृश्यता की कुप्रथा आ गई थी उसका निर्मूलन हो|
क्या सचमुच अस्पृश्यता आ चुकी थी?
- नहीं, अस्पृश्यता का भारत की आर्य संस्कृति से कोई लेना देना नहीं है| अस्पृश्यता अंग्रेजो की "बाँटो और राज करो" निति का परिणाम है|
अंग्रेजो से पहले भारत में हर मनुष्य को एक जैसा माना जाता था|
क्या सचमुच आरक्षण प्रणाली सबका विकास कर रही है?
- हर राज्य में इसका अलग अलग जवाब है| जहाँ पर मेरिट के कट-ऑफ़ में बहुत बड़ा अंतर देखने को मिलता है, वहां इसका जवाब नहीं है| और जहाँ पर मेरिट के कट-ऑफ़ में अंतर छोटा देखने को मिलता है| वहां इसका जवाब हां है|
यदि शिक्षा सामान रूप से हर जाति के पास पहुंचेगी, तो ही इस प्रणाली का फायदा है| यदि अनुसूचित और पिछड़े वर्गों के पास पर्याप्त शिक्षा नहीं पहुंचेगी, तो कट-ऑफ़ में अंतर ज्यादा देखने को मिलेगा और आरक्षण प्रणाली फेल हो जाएगी|
आज कल आरक्षण का प्रतिशत किसी भी जाति-वर्ग के कुल आबादी पर आधारित होता है और वह भी पूरे देश में| जिन जातियों को आरक्षण का लाभ मिला है, उसकी आबादी भारत की कुल आबादी का ७०% है| फिर भी शिक्षा के आभाव में उनका ठीक तरीके से विकास नहीं होता|
ऐसी परिस्थिति में नई आरक्षण प्रणाली की जरूरत है:
आरक्षण का प्रतिशत किसी भी जाति-वर्ग के कक्षा 10 पास कर चुके बेरोजगार की आबादी पर आधारित होना चाहिए और वह भी जिसके लिए भर्ती करनी है उसीकी सीमा के लिए|
इससे शिक्षा को बढ़ावा मिलेगा और हर जाति-वर्ग के नागरिक खुद के ज्यादा से ज्यादा विद्यार्थियो को कम से कम 10 पास करने के लिए प्रेरित करेंगे और आरक्षण प्रणाली का मूलभूत हेतु सिद्ध होगा|
इस पोस्ट को देखने से पहले मेरी यह पोस्ट अवश्य देखे: हर भारतीय नागरिक यहाँ का मूल निवासी है..............
आरक्षण या अनामत क्यों दिया गया है?
- जिससे हर जाति का विकास हो और हमारे समाज में जो अस्पृश्यता की कुप्रथा आ गई थी उसका निर्मूलन हो|
क्या सचमुच अस्पृश्यता आ चुकी थी?
- नहीं, अस्पृश्यता का भारत की आर्य संस्कृति से कोई लेना देना नहीं है| अस्पृश्यता अंग्रेजो की "बाँटो और राज करो" निति का परिणाम है|
अंग्रेजो से पहले भारत में हर मनुष्य को एक जैसा माना जाता था|
क्या सचमुच आरक्षण प्रणाली सबका विकास कर रही है?
- हर राज्य में इसका अलग अलग जवाब है| जहाँ पर मेरिट के कट-ऑफ़ में बहुत बड़ा अंतर देखने को मिलता है, वहां इसका जवाब नहीं है| और जहाँ पर मेरिट के कट-ऑफ़ में अंतर छोटा देखने को मिलता है| वहां इसका जवाब हां है|
यदि शिक्षा सामान रूप से हर जाति के पास पहुंचेगी, तो ही इस प्रणाली का फायदा है| यदि अनुसूचित और पिछड़े वर्गों के पास पर्याप्त शिक्षा नहीं पहुंचेगी, तो कट-ऑफ़ में अंतर ज्यादा देखने को मिलेगा और आरक्षण प्रणाली फेल हो जाएगी|
आज कल आरक्षण का प्रतिशत किसी भी जाति-वर्ग के कुल आबादी पर आधारित होता है और वह भी पूरे देश में| जिन जातियों को आरक्षण का लाभ मिला है, उसकी आबादी भारत की कुल आबादी का ७०% है| फिर भी शिक्षा के आभाव में उनका ठीक तरीके से विकास नहीं होता|
ऐसी परिस्थिति में नई आरक्षण प्रणाली की जरूरत है:
आरक्षण का प्रतिशत किसी भी जाति-वर्ग के कक्षा 10 पास कर चुके बेरोजगार की आबादी पर आधारित होना चाहिए और वह भी जिसके लिए भर्ती करनी है उसीकी सीमा के लिए|
इससे शिक्षा को बढ़ावा मिलेगा और हर जाति-वर्ग के नागरिक खुद के ज्यादा से ज्यादा विद्यार्थियो को कम से कम 10 पास करने के लिए प्रेरित करेंगे और आरक्षण प्रणाली का मूलभूत हेतु सिद्ध होगा|
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