आजकल एक मुद्दा काफी चर्चा में है: मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश को लेकर| खासकर महाराष्ट्र के अहमदनगर जिल्ले के शिंगणापुर के शनिमंदिर को लेकर| केवल शिंगणापुर नहीं हिंदु धर्म के प्रत्येक शनिमंदिरों में महिलाओं को प्रवेश नहीं है| लेकिन बात यहाँ तक ही सिमित नहीं है| माहवारी के ३-४ दिन रसोईघर और घर के मंदिर में भी प्रवेश नहीं है| उस पर भी आजकल मिडिया में बहस छिड़ी हुई है|
पहली बात तो ये की केवल हिंदु मंदिरों में ही प्रवेश नहीं
ऐसा नहीं है| दुसरे पंथ(Religions) के धर्मस्थानों पर भी महिलाओं को प्रवेश नहीं
है| उस पर बात कौन करेगा! लेकिन दुसरे पंथ की किताबें मैंने देखी नहीं, अतः इस पर बात
करना जरूरी नहीं समजता| यदि उन पंथ की महिलाए मोर्चा निकाले, तो कुछ सोचुंगा|
बात हिंदु धर्म की| वेद, उपनिषद, पुराण और गीता की कौन सी
रूचा में या कौन से श्लोक में महिलाओं पर इस तरह की पाबंदियाँ लिखी गई है, बताइए?
वैसे इस बात पर भी गारंटी नहीं मांग सकते| क्योंकि ब्रिटिश काल में मैक्समूलर और
विलियम हंटर जैसे अंग्रेजो ने हमारे शास्त्रों को भी नहीं छोड़ा था| संस्कृत सीखकर
उसको भी विक्षेपित कर दिया था|
कुछ बातें शास्त्रोक्त होती है, जब की कुछ बातें रूढ़ीयों से
निकलती है| तो ये भी संभव है की महिलाओं को विशेष अधिकार दिए गए हो और वही अधिकार
बाद में रूढ़ी में बदल गए हो| गुजरात में अंतिम क्रिया में ऐसी ही एक रूढ़ी है| मृत्यु
के बाद बेटे को ऋण चुकाने की पूजा होती है| उसमे ऐसा कहा जाता था की बड़े और छोटे
बेटे के आलावा किसी अन्य बेटों को ऋण चुकाने की जरूरत नहीं, I repeat, जरूरत नहीं,
जरूरत नहीं| लेकिन कब बन गया, बड़े और छोटे बेटे के आलावा कोई अन्य बेटा ऋण नहीं
चुका सकता!
ऐसा ही कुछ महिलाओं के बारे में होगा| शनिमंदिर के लिए पहले
कहाँ जाता होगा, महिलाए दूर से दर्शन कर ले तो भी शनिदेव उन पर प्रसन्न रहेंगे| लेकिन
कब बन गया महिलाए दूर से ही दर्शन करे, मंदिर में प्रवेश न करे!
दूसरी बात, माहवारी के ३-४ दिन, हम सब जानते है की इस समय
महिलाए शारीरिक रूप से कमजोरी महसूस करती है| ऐसे में यदि उस पर ऐसा नियम थोप दिया
जाए की घर का काम करना ही पड़ेगा, पूजा करनी ही पड़ेगी इत्यादि| तो क्या उस पर जुल्म
होगा या नहीं! इसलिए शास्त्रों ने ऐसा नियम निकाला होगा, ताकि उस समय महिलाए आराम
कर सके|
अंत में इतना ही कहुँगा, हिंदु धर्म हमें ऐसे मामले में
पूर्णतया स्वतंत्रता देता है| शास्त्र केवल हमारा मार्गदर्शन करते है, आदेश नहीं
देते| शास्त्रपूतं वदेत् वाक्यं मनः पूतं समाचरेत् अर्थात् शास्त्र का
मार्गदर्शन ले, लेकिन सोच-समझकर
सही-गलत का फैसला करे|
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