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Tuesday, March 24, 2015

गौ-हत्या का समर्थन करने वाले झूठ फैलाते है

गुजराती में मूल लेखक: संजय वोरा
गुजराती अख़बार दिव्य भास्कर के न्यूज़ वोच में प्रकाशित
अनुवाद: पथिक जोषी

गौ-मांस रोगोत्पादक है | गाय और भेंस की हत्या के कारण दूध की तीव्र कमी पैदा हुई है

      जब से महाराष्ट्र में गौ-वंश के कतल पर प्रतिबन्ध आया तब से सोसियल मिडिया में गौ-हत्या के समर्थन में और विरोध में विवादों का युद्ध चल पड़ा है| वरिष्ठ अभिनेता ऋषि कपूर भी इस युद्ध में कूद पड़े है| उन्होंने व्याकुलव्याकुल होकर कहा है की “ हा, मैं हिन्दू हूँ, फिर भी गौ-मांस खाता हूँ, बोलो, आपको क्या तकलीफ है?” ऋषि कपूर की तरह दुसरी मशहूर हस्तियाँ भी अपने गौ-मांस खाने के अधिकार में राज्य सरकार की दखल से व्यथित है| यद्यपि उनको पता नहीं है की जैसे गौ-मांस खाने पर प्रतिबन्ध है वैसे सिंह, बाघ, हिरन, हाथी, तेंदुआ आदि जंगली प्राणियों का मांस खाने पर भी कायदे से प्रतिबन्ध है, ऐसा सरकार का मानना है| यदि जंगली प्राणियों की भी सुरक्षा की जाती हो तो करोडो हिन्दू जिसको पवित्र मानते है, वह गौ-वंश की सुरक्षा करने के लिए सरकार क़ानून बनाए तो उसमें विरोध करने की जरूरत क्यों पड़ती है?
      गौ-हत्या का समर्थन करनेवालो की दलीलें(कुतर्क) भी लोगो को गुमराह करनेवाली, झूठ से भरपूर और अज्ञान से प्रेरित होती है; अतः उसका तर्कपूर्वक और विस्तारपूर्वक जवाब देना जरूरी बन जाता है|
1.       कहते है की महाराष्ट्र में गौ-वंश हत्या पर लगे प्रतिबन्ध से गायों के क़त्ल और गौ-मांस से जुड़े हुए डेढ़ लाख लोग बेकार हो जाएँगे| इसका जवाब यह है की ये डेढ़ लाख लोग सिर्फ गौ-वंश के क़त्ल के साथ नहीं बलके क़त्ल के सम्पूर्ण व्यवसाय के साथ जुड़े हुए है, जिसमें भेंस, भेड़, बकरी, सूअर, मुर्गे, बतख आदि भी सामेल हो जाते है| दूसरी तरफ, महाराष्ट्र में गायों के क़त्ल पर तो सन् 1976 से ही प्रतिबन्ध है| अभी जो प्रतिबन्ध लगा है वह बैल और सांड की हत्या पर प्रतिबन्ध है| बीफ का धंधा करनेवाले मटन, चिकन, पोर्क आदि धंधा कर ही सकते है|
2.       गौगौ-वंश के क़त्ल से जितने लोगो को रोज़ी मिलती है, उससे दस गुना लोगों की रोज़ी छीन जाती है| गाय जब तक जिन्दा हो, तब तक दूध देती है और बैल जब तक जिन्दा हो, तब तक खेती के काम में आते है| उसके आधार पर लाखों परिवारों की जीविका चलती है| गाय या बैल का क़त्ल करनेवाले गरीब पशुपालकों की रोज़ी का संसाधन छीन लेने का गुना करते है| ऊपर से सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के अनुसार किसी भी पशु का क़त्ल करना किसीकी रोज़ी का संसाधन नहीं माना जा सकता| अतः इसका प्रतिबन्ध न्यायिक है|
3.       महाराष्ट्र सरकार ने जब राज्य में चल रहे डांस बार पर प्रतिबन्ध लगाया था तब बियर बार में ग्राहकों का मनोरंजन करनेवाली लाखों युवतियाँ बेकार बन गई थी| उन्होंने मुंबई हाईकोर्ट में रीट पिटीशन डालकर दलील पेश कि थी की इस प्रतिबन्ध से हमारी जीविका का अधिकार छीन जाएगा| तब हाईकोर्ट ने कहा था की जिस प्रवृत्ति से समाज को नुकसान होता हो उसमें जीविका की चिंता नहीं हो सकती| यदि गौ-हत्या करनेवालों की जीविका की चिंता करे तो शराब, जुए, चोरी, वैश्यावृत्ति, ड्रग्स आदि की भी छुट देनी पड़ेगी| क्योंकि इस धंधे से भी लाखों लोगों की जीविका चलती है|
4.       गौ-हत्या का समर्थन करने वाले कहते है गौ-मांस प्रोटीन का सबसे सस्ता संसाधन है| ऐसा प्रचार लोगों को गुमराह करनेवाला है| पोषण का श्रेष्ठ संसाधन गाय का मांस नहीं बलके दूध है| गौ-हत्या करनेवाले दूध की कमी पैदा करके समाज को कुपोषण की ओर धकेल देते है| केवल गाय नहीं, भेंस, भेड़, बकरी, चिकन, सूअर आदि का मांस या अंडे भी प्रोटीन के रोगिष्ट संसाधन है, ऐसा साबित हो चूका है| इसी कारण से हाल ही में अभिनेता आमिर खान ने मांसाहार छोड़ने का संकल्प किया था| यदि समाज को सस्ता और सलामत प्रोटीन चाहिए तो मूंगफली, सोयाबीन और चना, मटर आदि फल्लियाँ के विकल्प भी है|
5.       गौ-हत्या प्रतिबन्ध का विरोध करनेवाले कहते है की बूढ़े और रोगिष्ट बैल के क़त्ल पर प्रतिबन्ध लगने वे अर्थतंत्र के लिए बोजरूप बन जाएंगे| वह सारा चारा खा जाएँगे, इसलिए तंदुरुस्त और युवान पशुओं को चारा नहीं मिलेगा| यह कुतर्क हलाहल स्वार्थ से प्रेरित है| जिस पशु ने जीवनभर इंसानों की सेवा की हो उसे बुढ़ापे में कत्लखाने में धकेल देना सबसे बड़ी क्रूरता है| यदि बूढ़े पशु भाररूप है, इसलिए उनका क़त्ल कर देना चाहिए, ऐसी दलील का स्वीकार करे तो बूढ़े इन्सान भी समाज के लिए भाररूप साबित होंगे| ऐसा कुतर्क देनेवाले  उनकी दयाप्रेरित हत्या करने की भी वकालत करने लगेंगे|
6.       कोई भी पशु कितना भी बुढा क्यों न हो जाए वह कभी अर्थतंत्र के लिए भाररूप नहीं बनता| पशु जब तक जिन्दा है तब तक मल और मूत्र देते रहते है, जिसमें से सोने जैसा खाद बनता है| उपर से गाय के गोबर का उपयोग गरीब लोग इंधन के तौर पर भी करते है| पशु का खाद जमीन में डालने से अनाज की पैदावार बढती है| अनाज मनुष्य के काम में आता है, जब की उसकी डंडियाँ पशुओं का आहार बनती है| आज केमिकल फर्टिलाईझर के कारण जमीन वीरान हो रही है तब गोबर की भूमिका महत्वपूर्ण बन गई है|

7.       गौ-वंश की हत्या पर प्रतिबन्ध से अल्पसंख्यक मुस्लिम कोम को भारी नुकसान होगा, ऐसा कहा जा रहा है| इसका जवाब यह है की मुस्लिम बिरादरी के एक प्रतिशत लोग भी गौ-हत्या के धंधे के जुड़े हुए नहीं है| गौ-मांस के धंधे के साथ कुछ तथाकथित हिन्दू भी जुड़े हुए है| जिनको हिन्दू मानना ही नहीं चाहिए| गौ-हत्या के मुद्दे पर कौमी द्रष्टिकोण से देखनेवाले बहुत बड़ी भूल कर रहे है| जिस धंधे से समाज और प्रजा का अहित होता हो उसे बंद करना ही चाहिए|

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