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Thursday, April 4, 2013

भारत और यूरोप की जलवायु और हमारे कुछ गलत खानपान



हम हर बात में यूरोप की नक़ल करते है और वो भी बिना किसी अक्कल के| लेकिन इन दोनों जलवायु में कुछ खानपान ऐसे भी है जो हमारी शारीरिक रचना के तौर पर बिलकुल सुसंगत नहीं है| आयुर्वेद में वात, पित्त और कफ का कांसेप्ट है, जिसमे इन दोनों जलवायु के अनुसार सिर्फ पित्त ही ऐसा रस है जो असमान है| यूरोप की जलवायु में पित्त की मात्रा बहुत कम है और भारत में जरूरत से ज्यादा| पित्त को एलोपेथी की परिभाषा में ब्लड-एसिडिटी कहते है|
 
आयुर्वेद के अनुसार यदि हमारे पेट की एसिडिटी ज्यादा हो जाए, तो वह एसिडिटी रक्त में चली जाती है और तभी पित्त होता है| यदि पित्त की मात्रा बढ़ना शुरू हो जाए, तो उससे सबसे पहली बीमारी आती है ब्लडप्रेशर| यह सब बाते स्वर्गीय राजीव दीक्षित जी ने कही है| यूरोप में शराब ली जाती है, जो पित्त को भड़काने का काम करती है| पित्त के भड़कने से जठराग्नि अत्यंत तेज होने लगती है| हमारे यहाँ शराब का स्थान नहीं है, क्योकि पहले से ही सबका पित्त जरूरत से ज्यादा है| ऊपर से शराब पी ली, तो वह हमारे शरीर को सिर्फ और सिर्फ नुकसान ही करेगी| 

हमें प्रश्न आता है की सोमरस तो भारत में था! फिर शराब का स्थान कैसे नहीं है| सोमरस और शराब में इतना ही अंतर है, जैसा वनस्पति घी और शुद्ध गाय के घी में है| सोमरस केवल ठंडी के दिनों में लिया जाता है| यह पित्त को भड़काता नहीं है, सुलगता है| आग कही धीरे धीरे सुलग रही है, तो उससे खतरा बहुत कम है और यदि बम्ब के धमाके से ब्लास्ट होती है तो उसका नुकसान बहुत ज्यादा है| यही अंतर सोमरस और शराब के बिच में है| शराब तो यूरोप के लिए भी घातक सिद्ध हुई है, जो भारतीय यूरोप में रहते है उसे शराब के स्थान पर सोमरस का ही पान करना उचित है| 

शराब के सेवन से लोग उल्टियाँ करते है, जिसकी यही वजह है| पित्त जितना बढेगा, उलटी उतनी ही ज्यादा होगी| शराब से लीवर ख़राब होने का भी यही कारण है| जब शराब लीवर में जाती है, तब लीवर की जठराग्नि एकदम से भड़क जाती है और बारबार ऐसा होने पर लीवर की स्वतः जठराग्नि पैदा करने की क्षमता नष्ट हो जाती है| 

अब बात भारत की, यहाँ हमारे धरेलू मसालों में एक ऐसी चीज है जो भारत की जलवायु में सबसे ज्यादा अनुकूल है, वह है मेथीदाना| मेथीदाने का प्रयोग हमारी रसोई में जमकर किया जाता है| यह एकमात्र ऐसी चीज है जो हमारे वात, पित्त और कफ; तीनो को संतुलित करती है| मेथीदाना भरपूर कहीये, जो अंग्रेज भारत में आए उसे भी मेथीदाना भरपूर खिलाइए| इसे खाने के रूप में न खा सके तो दवा की तरह खाइए| यदि किसी कारण से मेथीदाना नहीं मिल रहा, जैसे हॉस्टल के छात्र है, मेस में नहीं मिल रहा| तो अपनी रूम में एक शीशी में भरकर रखिए| रात में सिर्फ 1-2 मिलीग्राम मेथीदाना (10-15 दाने) पानी में भीगाकर सुबह उसी पानी को पीकर दाने चबा जाइए, यही माप है मेथीदाने का| 

मेथीदाना ब्लडप्रेशर के लिए भी फायदेमंद है, इसके लिए सिर्फ इतना करना है| 1-2 मिलीग्राम के बजाय आधा चम्मच मेथीदाना ले, 2 महीने में आपका ब्लडप्रेशर बिना किसी दवाई के सामान्य हो जाएगा| डायाबिटीज से ग्रस्त मरीज इसकी मात्रा बढ़ा दे, दो चम्मच मेथीदाना ले, 2 महीने में आपका डायाबिटीज बिना किसी दवाई के सामान्य हो जाएगा| 

आयुर्वेद और एलोपेथी में इतना ही अंतर है, एलोपेथी बीमार होने के बाद उसका उपचार कर सकती है| लेकिन आयुर्वेद तो बीमारी को रोकने और इलाज करने, दोनों में सक्षम है| दूसरी बात एलोपेथी की ज्यादातर दवाईया यूरोप की ठंडी जलवायु को ध्यान में रखकर बनाई जाती है, जो भारत के लिए सुसंगत नहीं है| भारत में हर दिन धुप निकलती है, सिर्फ धुप का स्नान लेने से ही हजारो तरह की बिमारिया दूर हो जाती है| उसमे ज्यादातर विषाणुजन्य(viral) बिमारिया है| किसी भी तरह की वायरल बीमारी सूर्य की इतनी तेज धुप में टिक ही नहीं सकती, लेकिन एंटीबायोटिक में वही विषाणु मरे हुए स्वरूप में लेकर हम अपने शरीर को ही बिगाड़ देते है| 

एक बात पिजा, बर्गर, पाऊ, ब्रेड इत्यादि फास्टफूड की| यूरोप में गेहू का आटा बनाना काफी मुश्किल है क्योंकि वहा के लोगो के हाथ में इतनी स्थितिस्थापकता (flaxibility) नहीं होती| अतः वे लोग मशीनों में आटे को एकदम बारीक़ पीसकर उसका मैदा बना देते है| मैदे के आटे से केवल फास्टफूड ही बनाए जा सकते है| हमारे यहाँ इतनी फसले उगती है की रोज एक नई डिश खा सकते है, फिर हम इन फास्टफूड के चक्कर में क्यों पड़े हुए है??? 

और भी बहुत जानने योग्य बाते है, आज इंटरनेट का दौर है| भाई ध्रुव सहानी जी ने यु-ट्यूब में राजीव दीक्षित जी के कई व्याख्यान अपलोड किए है| उसे अवश्य सुन ले, आपके जीवन में भारतीयता लाने के लिए यह बहुत कारगर होंगे|

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