एकोदेवः सर्वभूतेषु गूढ़ः सर्वव्यापी सर्व भूतान्तरात्मा।
कर्माध्यक्षः सर्वभूताधिवासः साक्षी चेताकेवलोनिर्गुणश्च॥
ईश्वर एक है। सभी जीवो में उसका वास है। हर जगह है। हर
जीव की आत्मा में है। हमारे हर कर्म उसी के आधीन है। वो हर जीवो के कर्मो
का वह साक्षी/गवाह है, निर्गुण और निराकार है। (श्वेताम्बर उपनिषद्)
हिन्दु शास्त्र हम सब के उपर बैठे ईश्वर के बारे में कोई बात नहीं रखी की
वह कैसा दिखता है, कहां रहता है। यूं कहे तो मनुष्य कितना भी ज्ञानी हो
सच्चे ईश्वर को नहीं जान सकता। जो संप्रदाय हमें अपने माता-पिता से मिला उसका ही पालन
करे। हर भक्ति, ईबादत या प्रेय में उस महान जगदिश्वर को सच्चे दिल से याद
करे। मन, कर्म, वाणी और वचन से किसी की हिंसा न करे, क्योकी हर जीव में
ईश्वर का वास है।उस जगदीश्वर को आज तक कोई समज नहीं पाया है। हिन्दु धर्म में एक श्लोक भी है।
असितगिरिसमम् स्यात् कज्जलम् सिंधुपात्रे सुरतरुवरशाखालेखिनीम् पत्रमूर्वी ।
लिखति यदि गृहीत्वा शारदा सर्वकालम् तदपि तव गुणानामीश पारम् न याति ॥
पर्वतरूपी स्याही, देववृक्ष की श्रेष्ठतम डाली, समुद्ररूपी स्याहीपात्र ऐसी
बडी बडी चीजे लेकर खुद देवी शारदा (जिसके समान संसार में कोई ज्ञानी नहीं
है) लिखना शुरू करे, फिर भी हे ईश्वर, आपके गुणो का वर्णन करना बहुत
मुश्कील है। (श्री पुष्पदंतमुखपङ्कज निर्गतेन शिवमहिम्न स्तोत्रै:)
आकाशात् पतितं तोयमं यथा गच्छति सागरम् ।
सर्वदेव नमस्कारान् केशवं प्रति गच्छति ॥
जैसे आकाश से पडा हुआ पानी सागर को ही मिलता है, उसी तरह हर देवी-देवो को
की गयी भक्ति एक ही ईश्वर को मिलती है। (लोकसाहित्य सुभाषित)यह श्लोक हमें बिलकुल एकेश्वरवाद से अवगत् करवाता है। एकेश्वरवाद अनेक ईश्वर को एक मानने का एक तरीका है। आज हिन्दु धर्म के साथ साथ संसार में बहुत सारे पंथ और संप्रदाय अस्तित्व में है। उन सब के लिए भी यह सुभाषित ठीक तरीके से बिठाया जा सकता है।
अपने जगदिश्वर से एक ही प्रार्थना करे।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया ।
सर्वे भद्राणी पश्यन्तु मा कश्चित दुःख भाग्भवेत् ॥
संसार में सब सुखी हो, सब निरोगी रहे, सब खुशिया देखे और कोई दुःख का भोगी न बने। (लोकसाहित्य सुभाषित)
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