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Friday, October 19, 2012

My comment on Bollywood Movie: Oh My God (OMG) इस फिल्म पर मेरा कोमेन्ट

सब का कहना है की इस फिल्म में हिन्दू देवी-देवताओ का मजाक उड़ाया है| कई जगह विरोध प्रदर्शन के भी समाचार मिले है, फिर मैं भी इस फिल्म को देखने गया की वास्तविकता क्या है|

इस फिल्म में कुछ अच्छी बाते भी है और कुछ खामिया भी है| सबसे बड़ी खामी "धर्म" शब्द को लेकर है, हमारे समाज में बहुत कम लोग समज पाते है की धर्म और संप्रदाय के बिच में फर्क क्या है| धर्म हमारा अपना होता है, जो आचरण करने का विषय है| जब की संप्रदाय प्रतीकात्मक होता है, अब प्रतीकात्मक का अर्थ यह है की कर्मकांड करना, तिलक लगाना, दूध चढ़ाना इत्यादि| कर्मकांड जैसी चीज का धर्म से कोई वास्ता नहीं होता, संप्रदाय से हो सकता है| धर्म को संस्कृत में व्याख्यायित किया है, "धर्मो धारयति इति" अर्थात् धर्म धारण करने की वस्तु है मतलब मन से आचरण करने की वस्तु है|

एक और खामी थी, हमारे वैदिक ज़माने से चले आ रहे rituals पर, आपको पता होगा वेद लिखनेवाले ऋषि-मुनि विज्ञान में पारंगत थे जो कर्मकांड हम वैदिक परंपरा के अनुसार करते है, उसमे किसी न किसी रूप से विज्ञान छीपा हुआ है| OMG नामक फिल्म में शिवलिंग पर दूध के अभिषेक को मजाक बनाकर रख दिया| अब इसमे क्या विज्ञान है वह मैं विज्ञान की परिभाषा में समजाता हु| दूध चढाने का रिवाज केवल श्रावण महीने का था, जो कालांतर में पुरे साल हो गया| श्रावण महीने में दूध बीमारियाँ फैलानेवाला होता है, आज अत्याधुनिक प्रोसेस में नहीं होता| वह दूध पीने से हम बीमार न हो जाए उसके लिए शिवलिंग पर चढाने का रिवाज बना दिया| जनेऊ, अर्ध्य, तिलक, यज्ञ आदी सब किसी न किसी तरह विज्ञान से जुड़े हुए है| अधिक जानकारी के लिए यहाँ देखे: --- हिन्दु धर्म और विज्ञान

अब अच्छी बाते जो निकालना सबके लिए मुश्किल है, क्योकी इन्सान का नेचर है, सबकी हमेशा गलतिया ही दिखती है|

एकेश्वरवाद, जो आज सभी religions पर एक सामान लगना चाहिए|

इश्वर हमारे मालिक जैसा नहीं है, बल्के सखा है (दोस्त है)|

आडम्बर और ढोंग का हमारे शास्त्रों के विरुद्ध है और इसका खंडन किया गया है, ऐसे ढोंगी जो अपने आपको बहुत विद्वान समजते है उन्हें गीता का रेफ़रन्स देकर समजाया गया है| इसमे थोड़ी अपनी बात रखता हु, यथार्थगीता के प्रणेता स्वामी अद्गडानंदजी ने भी कहा था, किसी संप्रदाय का स्थापक कुछ उपदेश देता है, लेकिन उनके अनुयायी उस उपदेश पर न चलकर उसीको पूजने लगते है और फिर भ्रम में पड जाते है और यही भ्रम रूढीओ का रूप ले लेता है| बाद में यदी कोई समजदार व्यक्ति यथार्थ उपदेश को सामने लाता है, तो धर्मस्थल और धर्मंगुरु हाय हाय करने लगते है, अधर्म अधर्म की बूम पाडने लगते है| इस फिल्म में भी वही हुआ है|

climax  में एक बात ध्यान में आई की, शास्त्रों और किसी भी गुरूओ के उपदेशो को अपनी शैली में ढालकर उसे लोगो में उपदेश के तौर पर मत फैलाए, क्योंकी लोग अक्सर किसी के उपदेशो पर न चलकर उसी व्यक्ति की पूजा करने लगते है|

खैर एक सिक्के के दो पहलू होते है, ज्ञान पाना और बांटना जरूरी है|

दूसरी बात है साईबाबा की, जो एक विद्वान फकीर थे| उन्होंने लोगो को "सबका मालिक एक" कहकर एकेश्वरवाद का सन्देश दिया| श्रद्धा और सबुरी को धर्म का प्रवेशद्वार बताया| लेकिन उनके उपदेश का तो कौन आचरण करता है, सब लगे हुए है शिर्डी में व्यापार और दर्शनार्थीओ को खुलेआम लुटने में| पवित्र शिर्डीधाम आज माने व्यापारधाम बन चूका है!

हमारे पूर्वजो ने चार धाम, बारह ज्योतिर्लिंग जैसे कई तीर्थस्थल बनाए ताकी इतने बडे देश में सभी लोगो में एकता व भाईचारा बना रहे और कोई कुए का मेंढक न बनाकर रह जाए| लेकिन आजके तीर्थस्थल तो मानो status symbol बन गए है| लोग मन्नत रखते है, मुंडन की, चलने की, प्रशाद की और प्रशाद का कचरा तो मानो तीर्थनगरी नहीं, कचरानगरी हो!

यह फिल्म एक बार जरूर देखनी चाहिए| यह आपको मजबूर कर देगी अपने धर्म और रीतिरिवाज के बारे में सोचने के लिए| लेकिन मेरा निवेदन होगा, की सबकी राय लेकर अपने मन से धर्म का आचरण करे| कहने को तो बहुत लिख सकता हु, बहुत बड़ा सब्जेक्ट है यह, लेकिन अब अपनी बात समाप्त करता हु| इश्वर सबका भला करे|

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